Matrik chhand aur Varnik chhand me antar? मात्रिक छंद और वर्णिक छंद?

नमस्कार दोस्तों | आज के हमारे इस post में हम जानने वाले हैं कि matrik chhand aur varnik chhand me antar क्या है? इसके साथ-साथ हम छंद से जुड़ी और भी विशेष जानकारी के बारे में जानेंगे | अधिकतर ऐसे लोग जिनको हिंदी व्याकरण के बारे में नहीं पता होता, उनको हिंदी लिखने और बोलने में समस्या आती है | अतः आपको हिंदी व्याकरण की जानकारी होनी चाहिए |

आज हम हिंदी ग्रामर के एक महत्वपूर्ण topic छंद से जुड़ी जानकारी जैसे छंद कैसे पहचाने, मात्रिक छंद का उदाहरण, छंद के प्रकार, वर्णिक छंद क्या है, matrik chhand aur varnik chhand me antar क्या है आदि के बारे में जानने वाले हैं | जिससे आपको हिंदी लिखने में आसानी होगी और आप सही हिंदी लिख पाएंगे | तो जिनको भी छंद या मात्रिक छंद तथा वर्णिक छंद के बारे में पता नहीं है और वे इसके बारे में जानना चाहते हैं, तो हमारा आज का यह पोस्ट matrik chhand aur varnik chhand me antar आपके काफी काम आने वाली है

| यदि आप इस पोस्ट को अच्छे से पढ़े और समझे तो यकीनन आपको मात्रिक छंद और वर्णिक छंद में अंतर समझ आ जाएगी | और छंद के बारे में आपको काफी जानकारी प्राप्त हो जाएगी | तो दोस्तों आइए जानते हैं कि आखिर matrik chhand aur varnik chhand me antar क्या है? यह जानकारी निम्न प्रकार से है |

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छंद का परिभाषा और अर्थ || chhand ka paribhasha || chhand kya hai?

Matrik chhand aur Varnik chhand me antar जानने से पहले यह जान लेते हैं कि आखिर छंद क्या होता है | दोस्तों छंद एक हिंदी grammar का प्रकार है, जिसका प्रयोग काव्य या पद्य की रचना करने में किया जाता है | छंद का सरल परिभाषा ऐसे काव्य रचना या पद्य रचना से है जिस काव्य रचना, पद्य रचना में छंद के अंगो का विशेष रूप से ध्यान रखकर तथा छंद के उन अंगों को सही से नियोजित करके लिखा या रचना किया जाता है |

इस प्रकार वह पद्य या काव्य रचना एक सही छंद युक्त रचना कहलाता है, जिसे पढ़ने या सुनने में आनंद की अनुभूति होती है | इसे ही छंद कहा जाता है | छंद के अंग जैसे- मात्रा, वर्ण, चरण, यति, गति आदि को एक विशेष रूप से व नियम अनुसार नियोजित करके पद्य या काव्य की रचना को छंद कहा जाता है |

जिस भी रचना में मात्रा, वर्ण, चरण, यति, गति आदि का अभाव हो या इन पर जोर ना दिया हो, उसे हम उचित छंद नहीं कह सकते हैं | अतः इस रचना में मात्रा, गति, चरण, संख्या, क्रम आदि का नियम अनुसार नियोजित किया जाए तो उसे छंद कहते हैं | छंद का अर्थ ऐसे काव्य रचना या पद रचना से है जिसको पढ़ते समय पाठक के मन में एक आनन्द का अनुभव होता है, जिसमें एक लय हो, चरण हो ऐसा रचना ही छंद कहलाता है और छंद का सही उदाहरण होता है |


जैसे:- शिव तांडव, हनुमान चालीसा, कबीर के दोहे आदि छंद का एक प्रमुख example है |

उदा. ”श्री गुरु……, निज मन…..।
बरनउँ रघुबर…., जो दायक….।।

जिस प्रकार शरीर के अंगों के बिना शरीर का निर्माण नहीं हो सकता ठीक उसी प्रकार छंद के अंगों के नियोजन के बिना किसी भी काव्य या पद की रचना छंद की अभाव को दर्शाता है और वह छंद नहीं कहलाता |

दोस्तों छंद का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में देखने को मिलता है तथा छंद शास्त्र का सबसे पहला उल्लेख पिंगल ऋषि द्वारा किया गया था | इसी वजह से छंद को पिंगल भी कहा जाता है | छंद हिंदी ग्रामर का एक ऐसा प्रकार है जिससे किसी भी रचना को सुंदर ढंग से सजाया जा सकता है |

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छंद के प्रकार और छंद के भेद या अंग || chhand ke ang tatha prakar?

दोस्तों किसी पद्य या पंक्ति को देखकर उसका छंद पता करने से पहले आपको छंद के अंग और प्रकार पता होना चाहिए |

छंद के अंग :-

दोस्तों छंद के मुख्यता 7 अंग होते हैं जो निम्न है |

1) चरण/पाद/पद-

चरण अर्थात् किसी पद रचना में कितने पंक्ति है उसको बताता है | जैसे ‘श्री गुरु……रज’ यह इस दोहे का प्रथम चरण है | मुख्यता दोहों में चार चरण होते हैं | पहला और तीसरा विषम चरण कहलाता है तथा दूसरा और चौथा सम चरण कहलाता है अर्थात् सम संख्या वाला चरण सम चरण और विषम संख्या वाला चरण विषम चरण कहलाता है |

उदा. गुरु गोविंद…1, काके लागू….2 ।
बलिहारी…..3, गोविंद…….4 ।।

2) वर्ण और मात्रा-

वर्ण का अर्थ होता है अक्षर जैसे चरण शब्द में तीन वर्ण है च, र और ण तथा मात्रा का अर्थ है किसी भी शब्द में लगे हुए मात्रा जैसे रास्ता शब्द में आ और आ की दो मात्राएं लगें हुए है | दोस्तों मात्रा के भी दो प्रकार होते हैं, एक छोटा मात्रा और बड़ा मात्रा | छोटे मात्रा को लघु मात्रा और बड़े मात्रा को गुरु मात्रा कहा जाता है | लघु मात्रा में अ,इ,उ,ॠ, अँ तथा गुरु मात्रा में आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः आदि आते हैं |

लघु मात्रा को l तथा गुरु मात्रा को S से दर्शाया जाता है तथा मात्रा गिनती करने के लिए लघु मात्रा को संख्या 1 और गुरु मात्रा को संख्या 2 से लिखा जाता है |

उदा. ‘रास्ता’ शब्द में आ और आ के दो गुरु मात्रा है जिसे S S के रूप में लिखा जाता है तथा इसमें कुल मात्रा 2+2=4 होगा |

‘दरवाजा’ शब्द में अ, अ, आ और आ के दो लघु और दो गुरु मात्राएं है जिसे l l S S के रूप में लिखा जाता है तथा इसमें कुल मात्रा 1+1+2+2=6 होगा |

3) गति/लय-

गति का अर्थ है कि किसी रचना को किस लाय या गति में पढ़ा या गया जा रहा है | एक प्रकार से रचना को पढ़ने का मेलोडी |

4) यति/विराम-

यति या विराम का अर्थ है रुकना अर्थात् कुछ पंक्ति पढ़ने के बाद रुकना जहां पर अल्पविराम (‘,’) या पूर्ण विराम (‘।’) लगते हैं |

5) तुक-

तुक का अर्थ है, किसी भी पंक्ति के आखिर शब्द का आपस में मेल खाना |

उदा. कृष्ण के दर्शन को तरसत रह गए,
नैना से अश्रु बरसत रह गए।
पता नहीं भूल कहां हुई भक्ति में,
कि आज भी प्रतीक्षा करत रह गए।।

6) संख्या व क्रम-

जब किसी पद्य रचना आदि में वर्ण व मात्रा की गिनती की जाती है तो उसे संख्या कहते हैं | जैसे लघु मात्रा को संख्या 1 व गुरु मात्रा को संख्या 2 तथा लघु व गुरु मात्रा के स्थान निर्धारण को क्रम कहते हैं |

7) गण-

गण का अर्थ है समूह अर्थात् ऐसा समूह जिसमें तीन वर्ण होते हैं ना कम ना ही ज्यादा | गणों की संख्या मुख्यता 8 होती है | प्रत्येक गण का अपना मात्रा होता है |

            गण↓             मात्रा ↓
           यगण -            ISS
           मगण -            SSS 
           तगण -            SSI
           रगण -            SIS
           जगण -           ISI
           भगण -           SII
           नगण -           III
           सगण -          IIS

उदाहरण:- शब्द ‘पहाड़’ में हमको गण पता करना है इसके लिए इसकी मात्रा पता करेंगे, पहाड़ में अ,आ,अ अर्थात् लघु , गुरु, लघु मात्रा है जिसको हम ISI के रूप में लिख सकते हैं | चूंकि ISI = जगण होता है अतः शब्द पहाड़ में जगण गण हैं | इसी प्रकार और भी तीन वर्ण वाले शब्द के गण आप निकाल सकते हैं |

छंद के प्रकार chhand ke kitne prakar Hote Hain:-

दोस्तों प्रमुख रूप से छंद तीन प्रकार के होते हैं और इन्हीं तीन छंदों के अंदर अन्य छंद आते हैं | मात्रिक छंद, वर्णिक छंद, मुक्तक छंद |

1) मात्रिक छंद:-

इस छंद में मात्रा की गिनती की जाती है | इसके 3 भाग होते हैं |

(अ) सम मात्रिक छंद-

इस छंद में पद आदि के रचना के सभी चरणों की मात्रा समान होती है | जैसे चौपाई के प्रत्येक चरण में 16 मात्रा, रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्रा, गीतिका के प्रत्येक चरण में 26 मात्रा, हरिगीतिका के प्रत्येक चरण में 28 मात्रा आदि |

(ब) अर्ध सम मात्रिक छंद-

इस छंद में रचना के कुछ चरण के मात्रा समान तथा कुछ चरण के मात्रा समान होते हैं | जैसे दोहा के विषम चरण में 13 मात्र और सम चरण में 11 मात्रा होती है |

उदा. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, ( 1 विषम चरण )
I I S I I S S I S
1 1 2 1 1 2 2 1 2 = 13 मात्रा
काके लागू पाय, ( 2 सम चरण )
S S S S S I
2 2 2 2 2 1 = 11 मात्रा

तथा सोरठा के विषम चरण में 11 मात्रा व सम चरण में 13 मात्रा होती हैं, बरवै के विषम चरण में 12 मात्रा तथा सम चरण में 7 मात्रा तथा उल्लाला के विषम चरण में 15 मात्रा और सम चरण में 13 मात्राएं होती है आदि |

(स) विषम मात्रिक छंद-

इस छंद के रचना पद्य के प्रत्येक चरणों में मात्राएं अलग-अलग होती हैं | जैसे कुण्डलियां में और छप्पय के रचना पद के चरणों में मात्राऊ भिन्न-भिन्न होती है |

2) वर्णिक छंद:-

इस छंद में वर्ण/अक्षरों की गिनती की जाती है | जिस काव्य रचना में वर्ण पर अधिक ध्यान दिया जाता है हो उसे वर्णिक छंद कहते हैं | जैसे सवैया छंद के प्रत्येक चरण में 22 से 26 वर्ण होते हैं, कवित्त छंद के प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं, मालिनी छंद के प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते हैं, मंद्रकांता छंद के प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं, इंद्रवज्रा छंद के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं तथा घनाक्षरी छंद के प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं आदि और भी छंद वर्णिक छंद के अंतर्गत आते हैं |

3) मुक्तक छंद:-

यह ऐसा छंद होता है जो ना तो वर्णिक होता है ना ही मात्रिक, क्योंकि इस छंद में मात्रा व वर्ण का कोई बंधन नहीं होता है | यह छंद के सभी नियम से मुक्त होता है | वर्तमान समय में अधिकांश कवि मुक्तक छंद का ही प्रयोग करते हैं |

उदा. अरे चित्त !
क्यों तू मुझे भरमाता है,
क्या तुझे नहीं पता
ऐसा करने से मेरा ही नुकसान होगा
एक बात पूछूं (उत्तर देगा?) क्यों कर रहा है तू ऐसा?

मात्रिक छंद और वर्णिक छंद में अंतर || Matrik chhand aur Varnik chhand me antar?

दोस्तों आपने यह तो जान लिया है कि मात्रिक छंद और वर्णिक छंद किसे कहते हैं | आइए जानते हैं कि इनमें मुख्यता क्या अंतर है |

  • 1) मात्रिक छंद में मात्राओं की गणना की जाती है जबकि वर्णिक छंद में वर्णों की गणना की जाती है |
  • 2) मात्रिक छंद के मुख्यतः तीन भाग होते हैं जबकि वर्णिक छंद के 10 से अधिक भाग होते हैं |
  • 3) मात्रिक छंद की विशेषता अधिक होती है बजाय वर्णिक छंद की |
  • 4) दोहा, चौपाई आदि मात्रिक छंद के अंदर आते हैं जबकि सेवइयां छंद आदी वर्णिक छंद के अंतर्गत आते हैं |
  • 5) प्राचीन समय में मात्रिक छंद का तथा वर्तमान समय में अधिकतर वर्णिक छंद का कवियों द्वारा प्रयोग किया जाता है |
  • 6) मात्रिक छंद के रचना को पढ़ने या सुनने में आनंद की अनुभूति होती है जबकि वर्णिक छंद की रचना को पढ़ने में उस प्रकार का आनंद अनुभव नहीं होता |
  • 7) मात्रिक छंद में प्रमुख दोहा छंद प्रचलित है तथा वर्णिक छंद में प्रमुख सवैया छंद प्रचलित है |
  • 8) मात्रिक छंद में लघु तथा दीर्घ मात्रा या गुरु मात्रा प्रमुख होते हैं जबकि वर्णिक छंद में वर्णों की संख्या प्रमुख होता है |
  • 9) विश्लेषण के अनुसार मात्रिक छंद में सबसे अधिक रचना किए गए हैं जबकि वर्णिक छंद में अपेक्षाकृत कम |
  • 10) मात्रिक छंद को पहचानने के लिए मुख्यता मात्रा को गिनना होता है तथा वर्णिक छंद को पहचानने के लिए वर्ण अर्थात् अक्षर को गिनना होता है |

Conclusion

दोस्तों आज के पोस्ट में हमने Matrik chhand aur Varnik chhand me antar तथा छंद से जुड़ी लगभग सभी प्रकार की जानकारी के बारे में जाना | यदि आज का हमारा यह पोस्ट आपको पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों में share जरूर करना | इसी तरह के knowledgeable article पढ़ने के लिए हमारे blog में visit करते रहना | यदि कोई भी समस्या या सुझाव हो तो हमें नीचे comments जरूर करना | मिलते हैं अगले post में | article पढ़ने के लिए धन्यवाद दोस्तों |

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